डा. उरुक्रम शर्मा
तलाश है एक पति की। नहीं-नहीं एक नौकर पति की। नौकर पति भी शन्नो के खसम जैसा। सुबह उठाकर चाय पिलाए, रात के बर्तन धोए, झाड़ू- पोंछा करे, बच्चों को नहलाकर स्कूल भेजे। उनका टिफिन भी खुद बनाए। अब मेमसाहब के लिए सब्जी काटे। इन सबके बीच शन्नो के ताने सुनें। मेरी ही किस्मत फूटी थी, जो इस तरह का खसम मिला। पता नहीं क्या पाप किए थे, जो भुगतने पड़ रहे हैं। पिताजी को दूसरा कलमुंहा नहीं मिला। जब देखो रोता ही रहता है। शक्ल देखो इसकी पूरी तरह आदि मानव जैसी लगती है।
काम के लिए जरा सा कह दो तो जान ही निकल जाती है। पैसे मांगो तो फत्त्या की मां जैसी शक्ल बना लेता है। सप्ताह में दो बार पार्लर क्या जाती हूं, पूरे आफिस को बता देता है। उसके आफिस में काबरा जी हैं। बड़े प्यार से बात करते हैं। मैं कहती हूं, जब आफिस छोड़कर मुझे बाहर लंच पर ले जाते हैं। मेरी सारी बातें मानते हैं। एक मेरा कलमुंहा है, जो आज तक बाहर नहीं ले गया। शादी बाद सिर्फ एक पिक्चर दिखाने ले गया वो भी जय संतोषी मां। इतने फटेहाल सिनेमाहाल में, मेरा तो खटमलों ने सारा खून ही पी लिया। और पूछता है कैसी लगी।
बोला अब तुम भी व्रत शुरू कर दो। हर शुक्रवार को खट्टा भी मत खाना। देखो तो सही कितना जुल्म ढाना चाह रहा था। भूखा रखने की सोच रहा था। खट्टा मुझे सबसे ज्यादा पसंद, वो भी बंद करवाने की साजिश की। इतना जालिम इंसान भगवान पति के रूप में किसे नहीं दे। मेरी तरफ अब तो इसे देखने की फुर्सत भी नहीं। दफ्तर में बतियाता रहता है। मैं कितना भी चिल्ला लूं, पर जवाब नहीं देता। ढीठ है पूरा। एक बार भी आई लव यू नहीं बोला। एक काबरा जी हैं जो मेरी पूरी बात समझते हैं। दिन में जब भी फोन पर बात करते हैं आई लव यू बोलते हैं।
बड़े प्यार से डार्लिंग भी कहते हैं। एक ये है, इसमें मुंह से कुछ निकलता ही नहीं। हंसी तो इसे आती ही नहीं। कसम से बस चले मेरा तो टामी की जगह इसके जंजीर डाल दूं। कमाकर क्या लाता है, धौंस देता है। मैं ही इसकी सारी तनख्वाह मार लेती हूं, उसे तो बस रोज किराये के 10 रूपए देती हूं बस। देखो उसे कितने पुराने कपड़े पहनता है। एक मैं हूं हर महीने एक साड़ी तो नई खरीद लेती हूं। उसे ये देखकर भी समझ नहीं आती। पूरी चिकना घड़ा है। मेरे कितने खर्चे हैं, किट्टी में जाना, नई फिल्म देखना, नए सैंडिल-साड़ी लाना।
लिपिस्टक तो बस 14 ही हैं मेरे पास। डिओ तो 12 तरह के ही हैं। बिन्दी भी 10 तरह की ही हैं। 22 जोड़ी सैंडिल ही तो हैं मेरे पास। उसे तो मेरे बन ठनकर रहने पर भी कुछ असर नहीं होता। भगवान तूने बहुत की। अब तो इस किस्म का पति किसी को भी नहीं दे।
बिल्लो बड़े ध्यान से शन्नो के मुंह से उसके नौकर पति के किस्से सुन रही थी। सुनकर बिल्लो अचंभित थी। उसके दिमाग से अब नौकर पति पाने का भूत गायब हो रहा था। वो सोच रही थी, शन्नो का पति सारा काम करता है। सारी तनख्वाह इसे देता है, फिर भी ये उसे पानी पी-पीकर कोस रही है। हे भगवान शन्नो के पति जैसा सबको मिल जाए तो क्या हो। बिल्लो वहां से घर के लिए निकल जाती है। रास्ते भर सोचती है शन्नो वाला फार्मूला यदि मैंने लगा तो वाट ही लग जाएगी। तभी उसकी छठी इंद्री ने उसे याद दिलाया पति तो पति ही चाहिए। यदि पति भी पत्नी के लिए इस तरह सोचने लगे तो क्या होगा। पति-पत्नी तो स्नेह, सम्मान, प्यार और समन्वय का जोड़ा है। नहीं-नहीं मेरा पति, पति ही अच्छा है। मुझे नौकर पति नहीं चाहिए।