जयपुर। डॉ. उरुक्रम शर्मा
विपक्ष एक होकर भाजपा की सरकार से मुकाबले और नरेन्द्र मोदी को हटाने के लिए रात-दिन एक किए हुए है। सारे विपक्ष के नेता मिलकर अब भाजपा से लड़ने को तैयार हैं। एक दौर था जब सारा विपक्ष मिलकर देश से कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए एक हो गया था। देश में इमरजेंसी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी मोरारजी देसाई ने कई दलों के साथ मिलकर ना केवल सरकार बनाई, बल्कि देश से इंदिरा गांधी का शासन खत्म कर दिया। वो बात दूसरी थी कि इतने दल मिलकर कभी एक छतरी और एक विचार के साथ नहीं चल सकते हैं।
सभी अलग-अलग विचारधारा वाले समझौते के स्थिति में नहीं होते हैं। यहीं कारण है कि देसाई की सरकार गई। वीपी सिंह, इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारें समय से पूर्व गिर गई। देश में मध्यावधि चुनाव तक देखे। यूपीए की सरकार ने 10 साल तक विभिन्न दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन भ्रष्टाचार की लंबी फेहरिस्त ने सत्ता से बाहर कर दिया। 10 साल सरकार चली, लेकिन स्थिर और मजबूत सरकार नहीं होने के कारण देश ना तो विकास की गति पकड़ सका, ना ही देश में आतंकवाद पर लगाम लग सकी।
देश में लगभग 23 साल तक गठजोड़ की सरकारें देखी और इसके नुकसान का आंकलन करके 2014 में पूर्ण बहुमत से भाजपा की देश में सरकार बना दी। 2014 में सरकार बनाने में कांग्रेस नेताओं के बड़बोलेपन और आपत्तिजनक बयानों ने सबसे ज्यादा मदद की। भाजपा विपक्ष की किसी भी बात का मुद्दा बड़ी आसानी से बनाकर देश भर में माहौल खड़ा कर देती है। इन्हीं बयानों को चुनावी हथियार बनाया, जिसने फ्लोटिंग वोटों पर जबरदस्त असर डाला। अब उदयनिधि स्टालिन का सनातन धर्म पर आया बयान और उसके बाद विपक्ष के दलों का चुप्पी साध लेने को लेकर अब भाजपा ने इसे चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का पासा फेंक दिया है।
जनवरी 2024 में राम मंदिर के मुहुर्त का ऐलान किया जा चुका है। इसी वर्ष लोकसभा के चुनाव होने हैं। 2023 में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ने संकेत दे दिया कि मोदी के विकास के साथ-साथ हिन्दू कार्ड का भी पूरा इस्तेमाल किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने सारे मंत्रियों को सनातन धर्म पर कही जा रही आपत्तिजनक बातों को संविधान की मर्यादा में रहते हुए पुरजोर प्रतिकार करने की मंजूरी देे दी है। संविधान के दायरे से मतलब सिर्फ सनातन की बात करनी है, वो भी पूरे अध्ययन व तथ्यों के साथ। दूसरे किसी मजहब के बारे में कुछ नहीं बोलना है। मोदी ने साथ ही अपने मंत्रियों को हिदायत भी दी है कि भारत और इंडिया मसले पर किसी तरह का बयान ना दें। इसके लिए पार्टी और सरकार के अधिकृत व्यक्ति ही जवाब देंगे। गृह मंत्री अमित शाह ने सनातन धर्म के बारे में की गई टिप्पणी का पुरजोर विरोध भी किया है। इसी के बाद मोदी के स्तर पर कदम बढ़ाए गए हैं।
सनातन धर्म पर तथ्यों के साथ बात करने के मामले में छूट देने से यह तो साफ हो गया कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में हिन्दू कार्ड का पूरा उपयोग किया जाएगा। हिन्दू वोट बैंंक को पूरी तरह अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। राम मंदिर का निर्माण नियत समय में अपने वादे के अनुसार पूरा करने और दुनिया में हिन्दुओं के सबसे बड़े तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने से सनातनियों की जनभावना का चुनावों में फायदा लिया जाए। स्टालिन की टिप्पणी पर समूचे विपक्ष का चुप्पी साध लेने से भाजपा को और बल मिल गया। भाजपाई यह साबित करने में कसर नहीं छोड़ेंगे कि हिन्दुओं के हितों की रक्षा करने में अकेले भाजपा की सक्षम हैं, बाकी सब तुष्टिकरण की राजनीति वोट बैंक के खातिर करते हैं। ना तो उन्हें देश से मतलब है ना ही सनातन धर्म से।
बिहार के शिक्षा मंत्री हो या फिर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य भगवान राम, राम मंदिर, रामचरित मानस जैसे धर्म ग्रंथों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करके पहले ही यह मुद्दा भाजपा के खाते में डाल चुके थे। उस समय भी किसी भी दल यहां तक की बिहार के सत्ताधारी दल हो या समाजवादी पार्टी किसी ने भी विरोध तक नहीं किया था। वैसे जहां धर्म का मुद्दा आ जाता है, तब किसी भी मजहब का व्यक्ति हो, उसकी भावना जुड़ जाती है। राम मंदिर को लेकर की गई कार सेवा इसका ज्वलंत उदाहरण है। जब बरसों तक राम मंदिर को लेकर आंदोलन चला, बाबरी ढांचा ध्वस्त हुआ, राज्यों में भाजपा सरकारों को भंग किया गया, तब अधिकतर सनातनी एक झंड़े के नीचे आकर खड़े हो गए थे।
देश की सरकारें बदल गई थी और उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भाजपा की सरकार बन गई थी। भाजपा किसी विषय को हवा के रूप में गांव-गांव और ढाणी-ढाणी तक बड़ी आसानी से ले जाती है। बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओंं की फौज के साथ राष्ट्रीय स्वयसेवक, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद की टीमें भी पूरी सक्रियता से जुड़ जाती है। जो घर-घर जाकर माहौल बनाने का काम करते हैं, जो कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में वोटों में तब्दील करने में मददगार साबित होते हैं।
बहरहाल देखने वाली बात यह है कि चुनावी साल में देश में क्या-क्या रंग देखने का मिलेंगे। येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल किसी भी स्तर तक जाने के लिए कमर कस चुके हैं। देश की सत्ता हासिल करने के लिए विपक्ष के 28 दल एक जाजम पर आ चुके हैं। वहीं सत्ता को बनाए रखने के लिए भाजपा नीत गठबंधन में नए दलों की एंट्री गति पर है।