जयपुर। भागमभाग की जिंदगी में पसरते तनाव और अवसाद के कारण आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुटकला सुनाया है, जो वर्तमान में व्यापक चर्चा में है। मोदी ने यह चुटकला एक टीवी चौनल के कार्यक्रम में सुनाया। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर मोदी को जमकर निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी, उसके नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने इस पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राहुल ने कहा है कि हजारों परिवार आत्महत्या के कारण अपने बच्चों को खो देते हैं. प्रधानमंत्री को उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। इस चुटकले के बाद इस बात पर बहस शुरू हो गई कि आत्महत्या जैसे अति संवेदनशील मुद्दे को क्या हास-परिहास का विषय बनाया जाना चाहिए?
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सबसे पहले जान लेते हैं कि आखिर यह मुद्दा क्या है और किस कारण चर्चा का विषय बना है। पीएम मोदी कल एक न्यूज चौनल के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। वहां मोदी ने कहा, ‘‘बचपन में एक चुटकला हम सुनते थे वो बताना चाहता हूं। एक प्रोफेसर थे और उनकी बेटी ने आत्महत्या की तो वह एक चिट छोडक़र गई कि मैं जिंदगी में थक गई हूं। मैं जीना नहीं चाहती हूं। मैं काकरिया तालाब में कूदकर के मर जाऊंगी। अब सुबह देखा तो बेटी घर में नहीं है. बिस्तर में चिट्ठी मिली, तो पिता जी को बहुत गुस्सा आया कि मैं प्रोफेसर, इतने साल मैंने मेहनत की, अभी भी काकरिया की स्पेलिंग गलत लिखकर जाती है।’’
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यह चुटकला सुनाकर मोदी हंसते हैं और इसी के साथ कार्यक्रम स्थल श्रोताओं के ठहाकों से गूंज उठता है। आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर मोदी के चुटकले और उसके बाद गूंजे ठहाकों ने सोशल मीडिया को गरमा दिया है। मोदी को ट्रोल किया जा रहा है। उन्हें सुसाइड पर चुटकला सुनाने का पहला पीएम बताया जा रहा है। कांग्रेस ने अपने ऑफिशियल सोशल मीडिया एकाउंट पर मोदी की आलोचना की है। कांग्रेस ने इसे शर्मनाक बताते हुए कहा है कि काश! प्रधानमंत्री मोदी समझ पाते कि किसी की आत्महत्या चुटकला नहीं, बल्कि अंतहीन दर्द होता है उस परिवार के लिए। जहां हर रोज सैकड़ों आत्महत्याओं का दंश ये देश झेलता है, वहीं पीएम मोदी का ऐसा संवेदनहीन बयान भावनाओं की मौत है। एक जिम्मेदार पद से ऐसा गैर-जिम्मेदाराना बयान और हंसी-ठहाका अशोभनीय है। हर घंटे छह से ज्यादा युवा आत्महत्या कर रहे हैं। सोचिए, उन परिवारों पर क्या बीतती होगी जिनके जवान बच्चे खुदकुशी कर लेते हैं। कंधे पर बच्चे की अर्थी उठाने से बड़ा दुख कोई नहीं होता है और आप आत्महत्या पर चुटकले सुना रहे हैं?
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सोशल मीडिया पर सवाल पूछा जा रहा है कि आत्महत्या एक त्रासदी है, क्या इसे मजाक का विषय बनाया जाना चाहिए? निश्चय ही इस सवाल का जवाब कोई ‘हां’ में नहीं दे सकता क्योंकि टेंशन और डिप्रेशन के कारण आत्महत्या के मामले जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, वह न केवल भारत बल्कि समूचे विश्व के लिए अत्यंत चिंता का विषय है। हमारे देश में जिंदगी को ठोकर मार कर मौत के आगोश में सो जाने वाले लोगों की तादाद में निरंतर इजाफा हो रहा है। भूख, कर्ज का बोझ, बेरोजगारी, बीमारी और गरीबी जैसे अनेक कारण हैं, जो लोगों को टेंशन और डिप्रेशन का शिकार बना रहे हैं। टेंशन और डिप्रेशन से जूझते लोग जिंदगी को खत्म कर डालने को ही विकल्प समझने लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश में आत्महत्या के मामलों में बड़ा इजाफा हुआ है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में वर्णित आत्महत्या के आंकड़े अत्यंत चिंताजनक हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वर्ष 2021 में एक लाख 64 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली। जीवन लीला खत्म करने वालों में लोगों में सर्वाधिक संख्या दैनिक वेतन भोगी यानी दिहाड़ी मजदूरों की थी।
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एनसीआरबी रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2021 में कुल 1 लाख 64 हजार 33 लोगों ने मौत को गले लगाया, इनमें से 42 हजार 4 लोग दिहाड़ी मजदूर थे। यह तथ्य बहुत चिंताजनक है कि वर्ष 2014 के उपरांत दिहाड़ी मजदूरों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं निरंतर बढ़ी हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि वर्ष 2020 के बाद दिहाड़ी मजदूर वर्ग आत्महत्या करने वाला सबसे बड़ा समूह बन चुका है। वर्ष 2020 में देश में 1 लाख 53 हजार 52 लोगों ने आत्महत्या की थी, इनमें 37 हजार 666 दिहाड़ी मजदूर थे। कहीं न कहीं बेरोजगारी और अभावों ने मजदूरों को मौत का दामन थामने को मजबूर किया है। महिलाओं, किसानों एवं विद्यार्थियों द्वारा जीवन लीला समाप्त किए जाने की घटनाएं हमारे लिए चिंता का कारण बनी हुई हैं।
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विशेषज्ञों का मानना है कि भागमभाग के जीवन ने आम आदमी का चौन छीन लिया है। समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं, जो इससे अछूता हो। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 के मुकाबले देश में वर्ष 2021 में सुसाइड के मामलों में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में वर्ष 2020 में 1,53,052 लोगों ने सुसाइड की जबकि 2021 में यह संख्या लगभग 7.2 फीसदी बढक़र 1,64,033 हो गई। रिपोर्ट में मानसिक विकार, शराब की लत, वित्तीय नुकसान, पेशे अथवा कॅरियर से सम्बद्ध समस्याओं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याओं को देश में सुसाइड की घटनाओं के बढऩे का बड़ा कारण माना गया है।
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वर्ष 2021 में सुसाइड की सर्वाधिक 22,207 घटनाएं महाराष्ट्र में हुईं, जो सामने आए, जो देश में सुसाइड के कुल मामलों का 13.5 फीसदी है। इसके बाद 18,925 सुसाइड से तमिलनाडू दूसरे, 14,965 सुसाइड से मध्यप्रदेश तीसरे, 13,500 घटनाओं से पश्चिम बंगाल चौथे और 13,056 सुसाइड से कर्नाटक का नंबर आता है। देश का कोई प्रांत ऐसा नहीं है, जहां आत्महत्या के आंकड़े चिंता का कारण न बने हुए हों।
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आत्महत्या के बढ़ते मामलों को कम करने के लिए जहां लोगों में जीवन के प्रति ललक जगाने की जरूरत है, वहीं विस्तार से उन कारणों की तह में जाने की भी आवश्यकता है जिनकी वजह से लोग जिंदगी का दामन छोडक़र मौत के आगोश में जाने को मजबूर हो जाते हैं। सुसाइड के बढ़ते मामले रोकने के लिए न केवल जन जागरूकता जगानी होगी, बल्कि सरकारों को भी इस पर व्यापक काम करना होगा। कोई व्यक्ति यूं ही राह चलते आत्महत्या नहीं कर लेता। उसके दिमाग में लंबे समय से कोई टेंशन चल रही होती है, जो धीरे-धीरे डिप्रेशन का रूप ले लेती है। डिप्रेशन के कारण आ रहे नकारात्मक विचारों और अलग-थलग पड़ जाने के कारण व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठाता है।
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यदि समय रहते उसकी मनस्थिति को भांप लिया जाए तो उसे मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है। इसके लिए गांव-देहात के स्तर पर योग्य मनोरोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की जरूरत है, जिनका वर्तमान में नितांत अभाव है। अगर डिप्रेशन के शिकार लोगों की समय पर काउसलिंग की जाए, उनका समुचित उपचार हो और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए परिवार का स्पोर्ट मिले तो निश्चय ही उनमें जिंदगी के प्रति मोह जगाया जा सकता है। ऐसा तभी संभव है, जब डिप्रेशन के शिकार लोगों के प्रति सब कुछ सकारात्मक हो। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या मोदी के चुटकले को सकारात्मक कहा जा सकता है?
-अमरपाल सिंह वर्मा
(स्वतंत्र पत्रकार)