रामगोपाल जाट
वरिष्ठ पत्रकार
पेपर लीक को लेकर एसओजी आए दिन खुलासे कर रही है। हर दिन कोई नया खुलासा होता है और अखबारों की सुर्खियां बन जाता है। समाचार पत्रों को खबर मिल जाती है, पाठकों को रोचक कहानी मिल जाती है। लोग पढ़कर सोचते हैं सरकार और एसओजी की जांच पेपर लीक मामले की तह तक जा रही है। कभी भूपेंद्र सारण पकड़ में आता है तो कभी ओमप्रकाश बिश्नोई, हर्षवर्धन मीणा तो कभी रिंकू शर्मा को पकड़ने की खबरें छपती हैं। कभी किसी आरोपी का घर गिराया जाता तो कभी किसी आरोपी की संपत्ति कुर्क की जाती है। हर दिन ऐसा नया कुछ हो रहा है, जिसके कारण पाठकों और स्टूडेंट्स में जैसे भर्ती परीक्षाओं को लेकर विश्वास बनता सा दिखाई दे रहा है। पेपर कितने में खरीदा, कितने में बेचा, कितना माल कमाया, किस अभ्यर्थी से कितना पैसा आया, किसने कितने अभ्यर्थियों के पास पेपर पहुंचाया। वो सब कुछ एसओजी खुलासे कर रही है, जो आप जानना चाहते हैं। हर दिन छोटी—मोटी मछलियां पकड़ में आ रही हैं, उनकी प्रॉपर्टी जब्त की जा रही है, बेशकीमती प्रॉपर्टी नष्ट की जा रही है, तमाम मछलियों को जेल की सलाखों के पीछे डाला जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश में राम राज्य आने ही वाला है। किंतु अभी भी प्रश्न अनुत्तरित है कि पेपर लीक करने वाले तमाम सरगनाओं के पास पेपर आते कहां से हैं? क्या ये लोग खुद पेपर बनाकर प्रकाशित करते हैं? क्या इनके घरों में प्रिंटिंग मशीनें लगी हैं, जो परीक्षा की पहली रात को अचानक से पेपर छाप लेते हैं? क्या ये लोग इतने बुद्धिजीवी हैं कि खुद के दिमाग से पेपर बना लेते हैं? क्या उनको सपना आता है कि कल होने वाली भर्ती परीक्षा के पेपर में कौन—कौन से प्रश्न आने वाले हैं? कहां से पता चलता है इनको पेपर?
पेपर बनाने से लेकर पेपर छापने और पेपर रखने तक का पूरा सिस्टम सरकार के पास है, यानी इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकारी अधिकारियों के पास होती है। जिस तरह से आरबीआई के द्वारा फुलप्रूफ सिक्योरिटी में ‘आरबीआई टू बैंक’ और ‘बैंक टू बैंक’ रुपये पहुंचाने का काम किया जाता है, ठीक वैसे ही कड़ी सुरक्षा में पेपर बनाने, प्रकाशित करवाने, पेपर रखने और परीक्षा केंद्रों तक पेपर पहुंचाने का काम सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जाता है, यह उनकी जिम्मेदारी होती है। यानी जब से पेपर बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है, तब से लेकर अभ्यर्थी के हाथ में पेपर पहुंचने तक का पूरा काम सरकारी अधिकारी करते हैं। इसको मतलब यह है कि पेपर यदि कहीं से लीक हो सकता है, बेचा जा सकता है, गुम किया जा सकता है, फेंका जा सकता है, हैंड टू हैंड कहीं पर पहुंचाया जा सकता है तो सिर्फ जिम्मेदार सरकारी अधिकारी ही ये काम कर सकते हैं। इतना तो आम आदमी के भी समझ आता है, लेकिन एसओजी वाले आम लोगों का इस विषय की तरफ ध्यान ही नहीं जाने देना चाहते।
जितने भी पेपर लीक होते हैं, उनकी जड़ में प्रत्यक्ष या परोक्ष, जिम्मेदार सरकारी अधिकारी ही होते हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि अभी तक एक भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी को पकड़ा नहीं गया है, बर्खास्त नहीं किया गया है, जेल में नहीं डाला गया है, किसी की प्रॉपर्टी जब्त नहीं की गई है, किसी जिम्मेदार की प्रॉपर्टी पर बुलडोजर नहीं चला है। आखिर क्यों? इस क्यों का जवाब एसओजी नहीं देगी। इस क्यों का जवाब देने वाले जिम्मेदार अधिकारी कतई नहीं देंगे।
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असल बात यह है कि सब मिलाजुली का खेल चल रहा है। प्रदेश के 70 लाख युवा दिनरात सरकारी नौकरी की तैयारी में अपनी जवानी खपा रहे हैं, लाखों रुपया कोचिंग संस्थानों को दे रहे हैं, किराए के कमरे लेकर खुद हाथों रोटी बनाकर, कपड़े धोकर, बर्तन मांज कर अपने परिजनों को सपने दिखा रहे हैं कि एक दिन सरकारी नौकरी आएगी और उनकी मेहनत का फल मिलेगा, लेकिन बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि उनके परिश्रम पर डाका डालने वाले सरकार के अंदर, सिस्टम के भीतर ही बैठे हैं। जिनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। आखिर क्या कारण है कि एसओजी इन मगरमच्छों पर हाथ नहीं डालती? क्या मजबूरी है कि सरकार के द्वारा एसओजी को इतनी ताकत दी जाती कि मगरमच्छों को पकड़कर जेल में ठूंस दे। सदन के अंदर और बाहर भी जो विधायक इन मामलों में लिप्त नहीं हैं, वो बार—बार मगरमच्छों को पकड़ने की मांग करते हैं, लेकिन एक भी नहीं पकड़ा जा रहा है। राज्य में 7 महीने पहले सरकार बदल गई, लेकिन सरकारी सिस्टम अभी तक नहीं बदल रहा है।
नई सरकार की आखिर क्या मजबूरी है, जो बड़े डकैतों को हाथ नहीं डाल रही है? विपक्ष में रहते आरपीएससी भंग करने की मांग करने वाली सत्ताधारी भाजपा की क्या मजबूरी आ गई, जो बड़े चोरों को लेकर जानबूझकर चुप है? आखिर क्यों सत्ता में आते ही भाजपा के नेता निरंकुश हो गए हैं? जिस काम को पिछली सरकार अंजाम दे रही थी, वही काम वर्तमान सरकार करेगी तो सत्ता बदलने का क्या मतलब हुआ? क्या भाजपा ने यह मान लिया है कि राज्य की जनता ने एक बार बीजेपी, एक बार कांग्रेस को शासन सौंपने का रिवाज बना रखा है, इसलिए काम करेंगे तो भी और नहीं करेंगे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है? यदि आप ऐसा सोच रहे हैं तो जिम्मेदार नेता बिलकुल गलत हैं। जनता हर सरकार का बारीकी से आकलन करती है, समय आने पर ईवीएम के माध्यम से अपना परिणाम भी दे देती है। पांच साल बड़ा टाइम नहीं होता है। सरकार को करीब 8 महीने गुजर चुके हैं, अधिकतम 52 महीने ही बचे हैं। काम करेंगे तो ‘जनता की सेवा’ के लिए फिर से 60 महीने मिलेंगे। पिछली सरकार की तरह किया तो किसी दूसरे को 60 महीने की सत्ता मिलेगी। प्रश्न यह उठता है कि जब एसओजी द्वारा छोटी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं तो बड़े मगरमच्छ कौन पकड़ेगा? पेपर बेचने वाले, खरीदने वाले, सप्लाई करने वाले दलालों को पकड़कर वाहवाही लूटने से कुछ नहीं होगा, जब तक सबसे बड़े मगरमच्छ नहीं पकड़े जाएंगे, तब तक फौरी तौर पर वाहवाही लूटकर किसी का भला नहीं किया जा सकेगा।
खबर छापने के लिए बार—बार मीडिया के समक्ष आकर अपनी पीठ थपथपाने से कुछ नहीं होगा, जो वादा किया गया है, उसे पूरा करके दिखाना होगा, तब जाकर जनता को विश्वास होगा। एसओजी के चाहिए कि इस मामले की जड़ में जाए, बेवजह दलालों को लेकर खबरें छपवाने से प्रकरण को जनता भूलने वाली नहीं है। दलालों के खुलासे करना अच्छी बात है, लेकिन दलालों तक पेपर किस जिम्मेदार कर्मचारी, अधिकारी या नेता ने पहुंचाया, इसका खुलासा नहीं होगा, उसको पकड़ा नहीं जाएगा, तब तक सब बातें फालतू हैं। पुलिस विभाग का अधिकारी जिम्मेदार है, शिक्षा विभाग का अधिकारी जिम्मेदार है, या किसी अन्य विभाग का कर्मचारी अथवा अधिकारी जिम्मेदार है, और यदि कोई नेता इसके लिए जिम्मेदार है तो उसको पकड़कर सलाखों के पीछे डालना होगा। कोरी बयानबाजी से और खबरें छपवा कर खुद की पीठ थपथपाने से कुछ नहीं होगा। जनता को सब दिखाई दे रहा है, कैसे मामले की लीपापोती की जा रही है।
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