अधिकतर लोगों को यह ही नहीं पता कि आरक्षण क्या है और इसकी आवाज कब उठी। ज्यादातर का यही मानना है कि आजादी के बाद आरक्षण को लाया गया, ताकि समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों को समानता का अधिकार देकर मुख्य धारा में शामिल किया जा सके। मुख्य धारा से अलग थलग पड़े वंचित वर्गों में बराबरी लाने और सामाजिक अत्याचार से संरक्षित करना आरक्षण का मूल मकसद रहा। विशेष रूप से आरक्षण के पीछे मानना यह था कि अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा के साथ वंचित वर्गों को सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी दी जाए, ताकि वो बराबर के खड़े हो सके।
आरक्षण की कहानी कोई आजादी के बाद की नहीं है। बल्कि आज से 142 साल पहले इसका बीज रोप दिया गया था। 19वीं सदी में महान विचारक ज्योतिराव गोविन्दराव फुले ने निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आरक्षण प्रतिनिधित्व की मांग रखी थी। ज्योति राव ने माना था कि समाज शिक्षित होना बहुत जरूरी है। गरीब वंचित वर्ग को मुफ्त शिक्षा मिले तो वो भी समान मंच पर खड़ा होने में सक्षम हो सकता है। वे छत्रपति शिवाजी महाराज से काफी प्रभावित थे और प्रेरणा स्त्रोत भी मानते थे। फुले ने सबसे पहले शादी समारोह में वैवाहिक संस्कारों में से ब्राह्मणों को अलग करने की मुहीम शुरू की। उन्होंने ब्राह्मणों के बगैर इस तरह के समारोह शुरू करवा दिए। प्रारंभ में विरोध भी हुआ, लेकिन बाद बाम्बे हाईकोर्ट नेे भी इसे मान्यता दे दी। वंचितों को शिक्षा व सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिले, इस मुहीम के सफल होने में वक्त नहीं लगा और 1882 में हंटर आयोग का गठन कर दिया गया।
1882 से लेकर 1979 तक आरक्षण को लेकर कई तरह के प्रयास किए गए। कई तरह के आयोग गठित किए गए। सरकारों ने उनकी सिफारिशों के अनुरूप इन्हें लागू किया। जातिगत आरक्षण की व्यवस्था शुरू हो गई, जबकि वंचित वर्गों को आरक्षण दिया जाना था, चाहे वो किसी भी जाति का हो। परन्तु अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग में 50 फीसदी तक के प्रावधान लागू कर दिए गए। 1980 में मंडल कमीशन ने आरक्षण को 22.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 49.5 प्रतिशत करने की सिफारिश की। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। वो इन सिफारिशों को मानने से घबरा रही थी। उसे पता था कि भारत में इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा। देश भर में आंदोलन खड़े हो जाएंगे। ऐसे में इन सिफारिशों को बंद ताले में रख दिया। 191 में देश में वीपी सिंह की सरकार थी। उस समय मंडल कमीशन का जिन्न बाहर आया और सरकारी नौकरियों में 4.5 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। मंडल कमीशन का गठन करने का मकसद सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का मूल्यांकन करके सिफारिश करना था।
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1891- त्रावणकोर के सामंती रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की जगह विदेशियों की भर्ती के खिलाफ आरक्षण की मांग उठी थी। इसको लेकर जबरदस्त आंदोलन भी हुआ।
1901- कोल्हापुर रियासत के शालू महाराज ने आरक्षण की विधिवत शुरूआत कर दी। वंचित समुदाय के लोगों को नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण देने का आदेश ही जारी कर दिया। आरक्षण को लेकर यह पहला अधिकारिक आदेश था।
1908- में देश में अंग्रेजों की हुकुमत थी। उन्होंने अपने निजी स्वार्थों को देखते हुए भारत को जातियों में बांटने का काम कर डाला। कहने को तो इसे वंचितों को समान मंच पर खड़ा करना था, लेकिन मकसद फूट डालो और राज करना था। उन्होंने कम हिस्सेदारी वाली जातियों को थोड़ा थोड़ा आरक्षण दिया।
190- भारत सरकार अधिनियम 109 और 1919 के तहत आरक्षण का प्रावधान किया गया, लेकिन इसमें समय समय पर कई परिवर्तन किए गए।
1921- मद्रास प्रेसीडेंसी ने दो कदम आगे बढ़ा दिए। उन्होंने गैर ब्राह्मणों 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों को 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। इसी प्रकार मुसलमानों व ईसाइयों को भी 16-16 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान कि। अनुसूचित जातियों के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी किया गया।
1932-महात्मा गांधी और आंबेडकर ने पुणे की यरवदा जेल में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे पुणे पैक्ट नाम दिाय गया। इस समझौते में प्रांतीय और विधान परिषद में गरीबों के लिए सीट की गारंटी दी गई। ब्रिटिश हुकुमत ने इसके आधार पर कुछ सीटें वंचित वर्ग के लिए आरक्षित की गई।
1942-आंबेडकर ने एससी जातियों के लिए दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की गई, ताकि वो आरक्षण के लिए लड़ाई कर सके। उन्होंने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए आवाज बुलन्द की।
1947-देश की आजााजी के बाद एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण के कई प्रस्ताव दिए गए।
1979 में मंडल कमीशन का गठन किया गया। कमीशन ने 1980 मे अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। इसमें मौजूदा आरक्षण को दोगुना से ज्यादा करने की सिफारिश की, जिसमें 11 साल बाद वीपी सिंह सरकार ने लागू किया। 2014 में देश में मोदी की सरकार आ गई। उन्होंंने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण दिया।
सवाल यही है कि आजादी के पहले से आरक्षण दिया जा रहा है। 142 साल में भी वंचित वर्गों को क्या समान मंच नहीं मिला। अब इसमें और कितना समय लगेगा? या फिर यह वोट पाने का एक मजबूत हथियार ही बना रहेगा।
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