-राजस्थान में भाजपा सत्ता हासिल करने को बेचैन
-गहलोत राजस्थान रिपीट होने को लेकर आश्वस्त
-मध्यप्रदेश बचाना और छत्तीसगढ़ हासिल करना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती
-मध्यप्रदेश को लेकर कांग्रेस की गंभीरता नहीं आ रही नजर
-छत्तीसगढ़ में बघेल बेफ्रिक आते हैं नजर
डॉ. उरुक्रम शर्मा
कहीं भाजपा सोई हुई है तो कहीं कांग्रेस। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास भाजपा से सत्ता छीनने का अच्छा मौका है, लेकिन अभी निंद्रा नहीं टूट रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा कुंभकर्णी नींद में है। राजस्थान में भाजपा को उम्मीद नजर आ रही है, परन्तु आपसी लड़ाई-झगड़ों में ही उलझी हुई है। मौका परस्त, जनाधार विहीन और स्वार्थी नेता जननेता वसुंधरा राजे को रोकने में पिछले पांच साल से लगे हुए हैं। यहां तक कि विपक्षी पार्टी के नेताओं से मिलकर अपनी ही पार्टी की जननेता पर अनावश्यक कीचड़ उछालने में लगे हैं। हालांकि इसके परिणाम इन्हें भुगतने पड़़े हैं।
पांच साल में हुए विधानसभा उपचुनाव में एक सीट (सहानुभूति लहर के कारण) ही जीत पाए, वो भी किनारे पर। बाकी सारी सीटें खो दी। पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व साढ़े चार साल तक इन जनाधारविहीन नेताओं की बातों को सुनकर भरोसा करता रहा और पार्टी को एकजुट होने के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
भाजपा को यह गलतफहमी है कि हर बार नरेन्द्र मोदी का कार्ड ही चलेगा। इस भ्रम को कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जनता ने नकार दिया। मसलन भाजपा को दोनों राज्यों से सत्ता गंवानी पड़ी। भाजपा ने मोदी के आगे स्थानीय नेताओं को दरकिनार किया, जिसका खमियाजा भुगतना पड़ा। राजस्थान में जब चुनाव नजदीक आ गए तो पार्टी ने कई बार सर्वे करवाया और उन सबमें वसुंधरा राजे को जनता ने टाप पर रखा। इसमें जनाधारविहीन नेताओं के बारे में भी जाना गया किन्तु वो वसुंधरा के आगे कहीं टिक नहीं पाए। इस पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तंद्रा टूटी और राजस्थान जीतने के लिए वसुंधरा को पूरा महत्व देने का फैसला करना पड़ा। पिछले कुछ महीनों में राज्य में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री की बड़ी सभाएं हुई और सबमें वसुंधरा को ना केवल अग्रणी रखा, बल्कि मंच से उनका भाषण भी करवाया।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चतुर राजनेता हैं। वो जानते हैं कि भाजपा से सिर्फ वसुंधरा ही ऐसी नेता है, जो उन्हें सीधे तौर पर टक्कर दे सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने सार्वजनिक मंचों से वसुंधरा की प्रशंसा करना शुरू कर दिया। ताकि भाजपा उन्हें आगे लाने की गलती ना करें और आसानी से गहलोत अपना काम कर जाएं।
भाजपा को वैसे भी राजस्थान में सरकार आसानी से आने की उम्मीद है। लेकिन गुटबाजी ने मुश्किलें खड़ी कर रखी है। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी पिछले छह महीनों से लगातार राजस्थान के दौरे पर कर रहे हैं। अशोक गहलोत सरकार की मुफ्त की योजनाओं, सीधे लाभार्थी के खाते में पैसे ट्रांसफर करने से भाजपा के हलक में आई हुई है। इसका तोड़ निकाले बिना भाजपा की राह कठिन है। इसे देखते हुए ही निकट भविष्य में नरेन्द्र मोदी फिर राजस्थान आ रहे हैं। वे नागौर में वीर तेजाजी की धरती से किसानों के खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर करेंगे।
साथ ही भाजपा अब क्षेत्रवाद और जातिवाद के हिसाब से एक एक सीट पर गणित बिठा रही है। पूर्वी राजस्थान में अमित शाह सभा करके बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं की बैठक ले चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीट ही भाजपा सहयोगी के खाते में आई थी। इस क्षेत्र में मिली बड़ी हार ने भाजपा के सत्ता के रास्ते बंद कर दिए थे। इस बार उस गलती को दोहराना नहीं चाहती है। गांव, ढाणी, चौपाल तक गहलोत सरकार को घेरने के लिए भाजपा ने नहीं सहेगा राजस्थान नाम से आंदोलन लांच कर दिया। कितना सक्रिय रहता है, यह तो परिणाम बताएंगे। राज्य में जगह-जगह से परिवर्तन यात्राएं निकाली जाएंगी।
मध्यप्रदेश में भाजपा लगभग 20 साल से राज कर रही है। पिछली बार तो बहुमत नहीं होने पर राजनीतिक खेल के जरिए कमलनाथ सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाई थी। इस बार कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में सरकार बनाने का अच्छा चांस है, परन्तु अभी सुस्त पड़ी है। मध्यप्रदेश कांग्रेस पूरी तरह खेमों में बंटी हुई है। कमलनाथ गुट, दिग्विजय सिंह गुट आदि आदि। सबको मुख्यमंत्री की कुर्सी तो चाहिए किन्तु हासिल करने के लिए ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार मुफ्त की घोषणाओं के साथ खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर करके जनता को मोहने का काम कर रहे हैं। यहां तक कि गुंडों, अपराधियों को लेकर भी सख्त हो गए हैं। उनकी इमारतों पर योगी सरकार की तरह बुलडोजर चलाकर सुर्खियां बटोर रहे हैं।
छत्तीसढ़ में भाजपा की स्थिति कमोबेश वैसे ही है, जैसे मध्यप्रदेश में कांग्रेस की है। कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राजस्थान की तर्ज पर योजनाएं लागू करना और गहलोत पैटर्न पर चलकर एंटी एनकंबेंसी को रोकने की जुगत में है। भाजपा के मजबूत नहीं होने से उनकी राह काफी आसान नजर आ रही है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी छत्तीसगढ़ को महत्व नहीं दे रहा है। पूरा ध्यान राजस्थान पर केन्द्रित कर रखा है। तेलंगाना में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही भगवान भरोसे है। वहां क्षेत्रीय दलों को वर्चस्व होने के कारण दोनों कुछ कमाल नहीं कर पा रहे हैं।
हालांकि कांग्रेस को वहां सरकार बनने का पूरा भरोसा है तो भाजपा को त्रिपुरा की तरह सत्त मिलने की उम्मीद है।
राजनीतिक विश्लेषकों को मानना है कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों दलों को ही अपने स्थानीय जननेताओं पर भरोसा करके आगे बढ़ना चाहिए। मोदी और राहुल का चेहरा वोटों में बढ़ोतरी का काम करेगा, लेकिन स्थानीय नेता से जनता का लगाव व अपनापन होता है। चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर ही ज्यादा फोकस करना होगा, ताकि लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़कर वोटों में तब्दील किया जा सके। नौजवानों और महिलाओं को रिझाने में जो पार्टी सफल रही, वही इन चारों राज्यों में बाजी मारने में सफल रहेगी।
जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), गोपाल नगर विजयादशमी उत्सव (शस्त्र पूजन एवं पथ संचलन) कार्यक्रम…
Aaj Ka Itihas 12 October: इतिहास में हर दिन खास होता है। अगर देश-दुनिया के…
Top 10 Big News of 11 October 2024: देश- दुनिया की ताजा खबरों के लिए…
जयपुर। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ (Madan Rathore) ने आज (गुरूवार) को भाजपा प्रदेश कार्यालय…
CM Bhajanlal Sharma News : जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (CM Bhajanlal Sharma) इन…
जयपुर। विजयादशमी पर सागानेर महानगर के हजारों पूर्ण गणवेशधारी स्वयंसेवक 'पराक्रम' का सामूहिक प्रदर्शन करेंगे।…