खुद की कुल्हाडी ने प्रदेश भाजपा ने पैर काटे
-कद्दावर जननेताओं को साइड लाइन किया
-जातिगत समीकरण का ध्यान रखे बगैर टिकट बांटे
-टिकट बंटवारे में मनमर्जी
उरुक्रम शर्मा
राजस्थान में लोकसभा चुनाव परिणाम ने भाजपा को दिन में तारे दिखा दिए। भाजपा के सारे सपने चकनाचूर हो गए। भाजपा का मिशन-25 फेल हो गया। भाजपा को इतनी कम सीटें मिलने की उम्मीद भी नहीं थी। जबकि पिछले दो लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की तमाम सीटों पर जबरदस्त तरह से जीत हासिल की थी। आखिर ऐसा क्या रहा कि जोर का झटका धीरे से लगा। भाजपा प्रदेश में पिछले तीन साल से एक ऐसी प्लानिंग पर काम हो रहा था, जिससे कद्दावर नेताओं को साइडलाइन किया जाए, नई टीम को खड़ा किया जाए। इसमें उन्हें सफलता भी मिली, लेकिन परिणाम नहीं। राजनीति में अनुभव और कद को नकार कर यदि फौज तैयार की जाती है, तो उसकी हार निश्चित होती है। इसी योजना के तहत प्रदेश भाजपा की कद्दावर नेता वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से ही एक गुट ने अलग थलग करने का प्लान पर काम करना शुरू कर दिया था।
दिल्ली तक उस ग्रुप ने उनकी इमेज का डाउन करने का काम किया। विधानसभा चुनाव से उन्हें पूरी तरह दूर किया गया। जिन लोगों ने यह सब काम किया, उनके क्षेत्रों वाली लोकसभा सीटों पर भाजपा को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। चूरू से लगातार जीत रहे राहुल कस्वां का नेताओं की मूंछ की लड़ाई के कारण टिकट से दूर किया गया, लेकिन कस्वां ने हार नहीं मानी। उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन करके ताल ठोक दी और आज परिणाम आने के साथ चूरू से बीजेपी की विदाई हो गई। अब नेता बगले झांख रहे हैं। ना केवल चूरू हाथ से गया, बल्कि पूरा शेखावटी व पूर्वी राजस्थान में भी झटका लगा गया। दौसा, भरतपुर, करोली-धोलपुर, टोंक-सवाई माधोपुर में भाजपा के दिग्गज नेता को कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा।
सबसे अहम कारण कद्दावर जननेता को साइड लाइन करने का प्रदेश भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा टिकट वितरण में कद और क्षेत्र में वजूद को दरकिनार करके अपने अपने लोगों पर दांव खेला गया, प्रदेश भाजपा के इसी ग्रुप में दिल्ली में उनके बारे में फीड बैक दिया। अब दिल्ली उन नेताओं की परेड कराने की तैयारी कर चुकी है। महत्वपूर्ण यह भी रहा कि जमीनी स्तर पर लोगों के मूड को भांपा नहीं गया। सरकार विरोधी लहर को मापा नहीं गया। जो सीटें भाजपा को ही मिलती, उन सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी ने जहां प्रचार किया, वहां उनका प्रचार भी असर नहीं कर पाया। 60 फीसदी से ज्यादा सीटों पर तो सीधे तौर पर नुकसान हुआ। कम वोटिंग प्रतिशत का भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। वहीं कांग्रेस ने प्रदेश के अहम मुद्दों को ध्यान में रखते हुए चुनाव लड़ा। जातिगत समीकरण और उम्मीदवार के मामले में कोई चूक नहीं की औरर भाजपा इसमें गच्चा खा गई।
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