राजस्थान में विधान सभा चुनाव में पिछले 4 बार के चुनाव के मुकाबले रिकॉर्ड मतदान हुआ है। ये आंकड़ा 75 प्रतिशत के पार कर रहा है और इसके बढ़ोतरी होने की संभावना है। इस हिसाब से राजस्थान से गहलोत सरकार की विदाई और भाजपा की ताजपोशी तय मानी जा रही है।
2003 में 67 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई थी तो भाजपा की सरकार बनी, 2008 में 62 फीसदी वोटिंग हुई तो कांग्रेस की सरकार बनी। 2013 में 13 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई और ये आंकड़ा 75 फीसदी पर किया। भाजपा ने 150 से ज्यादा सीटें जीती। 2018 में 74.06 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस की सरकार बनी। यानी जब भी पिछले चुनाव से कम वोटिंग हुई तब तब कांग्रेस और ज्यादा वोटिंग पर भाजपा की ताजपोशी हुई।
राजस्थान में पूर्ण बहुमत से सरकार बनेगी। अनुमान के अनुसार 125 से ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी के खाते में जाएगी। हालांकि दोनों की पार्टी अपने अपने जीत के दावे कर रही है और सट्टा बाजार भाजपा को 125 और कांग्रेस को 62 से 65 सीटों का अनुमान लगा रहा है।
अब लड़ाई मुख्य मंत्री की
भाजपा सत्ता में आती है तो मुख्य मंत्री कौन बनेगा, इसको लेकर बवाल मचेगा। इस बार भाजपा बिना मुख्य मंत्री प्रोजेक्ट किए चुनाव लड़ी है। वसुंधरा राजे को रोकने के लिए भाजपा का एक बड़ा गुट पूरी तरह से सक्रिय रहा है, इसमें भाजपा प्रदेश के कुछ बड़े पदों पर बैठे पदाधिकारी और वो लोग शामिल रहे को वसु कैबिनेट में मंत्री तक रहें, या कहे तो वसु ने उन्हें आगे बढ़ाया। वसु के अलावा भाजपा के पास कोई कद्दावर नेता राजस्थान में नहीं है।
कांग्रेस जीतती है इस बार अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिलेगा, इस बार पार्टी सचिन पायलट पर दांव खेलेगी। हालांकि गहलोत ने ऐसी jajam बिछा रखी है कि वो पायलट की ताजपोशी नहीं होने दे। भाजपा ने ध्रुवीकरण का खेल खेला और काफी हद तक ये जिसने पर भी लगा है।
यही कारण हैं की जहां जहां बाबा मैदान में उतारे गए, वहां ज्यादा वोटिंग हुई। जैसलमेर में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई वहां प्रतापपुरी महराज को मैदान में उतारा गया, कांग्रेस ने भी धर्म गुरु सालेह मोहम्मद पर दांव खेला है। बहरहाल सारी तस्वीर तो 3 दिसंबर को मतगणना के बाद भी साफ होगी, अभी सिर्फ अनुमान के आधार पर ही विश्लेषण किए जा सकते है।