Hanuman Jayanti 2024: हनुमान जन्मोत्सव 23 अप्रैल 2024 मंगलवार को है। इस दिन पूर्णिमा तिथि रहेगी। इस बार हनुमान जयंती ख़ास इसलिए भी मानी जा रही है, क्योंकि यह मंगलवार के दिन पड़ रही है। दरअसल, धर्म शास्त्रों में हनुमान जी के जन्म का दिवस ‘मंगलवार’ ही बताया गया है। प्रभु श्री राम द्वारा हनुमान जी को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है, जिसके वजह से वह आज इस कलयुग में भी विचरण करते है और प्रभु के ध्यान में मग्न रहते है।
बताया जाता है कि, इस कलयुग में जब पापों की अति हो जायेगी यानी पाप की संख्या पुण्य के मुकाबले अधिक होगी, तो प्रभु विष्णु कल्कि अवतार में अवतरित होंगे। इस दौरान हनुमान जी भी अपने अदृश्य रूप को त्याग कर सार्वजनिक तौर पर सामने आ जाएंगे और कल्कि भगवान् का साथ देंगे। हनुमान जी के इस कलयुग में विचरण करने के कई साक्ष्य मौजूद है। क्या आप जानते है इस कलयुग में ‘हनुमान जी’ के दर्शन करने वाला इकलौता शख्स कौन है?
धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है कि, हिन्दी साहित्य के महान भक्त कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ जी को इस कलयुग में प्रभु हनुमान जी के दर्शन साक्षात् हुए थे। इसके पश्चात ही उन्होंने महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की स्थापना की थी। तुलसीदास जी स्वयं बड़े रामभक्त माने जाते है। तुलसीदास जी को आदिकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी कहते है। हनुमान जी के दर्शन करने की उनकी कथा भी बड़ी रोचक है।
बताया जाता है कि, एक बार तुलसीदास जी की मुलाक़ात रामकथा सुनाते समय एक प्रेत से हुई। प्रेत ने उन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय सुझाया था। इसके बाद वे हनुमान मंदिर गए और वहां राम नाम का जाप करने लगे। इसे सुन हनुमान जी तुलसीदास जी के समक्ष पहुंच गए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए, तो तुलसीदास जी ने श्री राम से भेंट करने की इच्छा व्यक्त की। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को भेंट करवाने का वादा किया।
हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा कि, वे चित्रकूट जाकर प्रभु का इंतजार करें। हनुमान जी ने मंदिर के पास बैठे हुए उनसे कहा इस रास्ते से दो बड़े राजकुमार घोड़े और धनुष के साथ निकलेंगे, वे प्रभु श्री राम और उनके अनुज लक्ष्मण होंगे। तुलसीदास जी भी हनुमान जी के कहे अनुसार उस रास्ते पर आंखें लगाकर बैठे रहे। इस बीच उस रास्ते से दो सुंदर बालक निकले, लेकिन वे आकर्षण में उन्हें पहचान नहीं पाए। बाद में उन्हें अपने आप पर पश्चाताप हुआ।
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तुलसीदास जी को मायूस देख हनुमान जी ने उन्हें प्रातःकाल फिर प्रभु के दर्शन होने की बात कही। संवत् 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन श्री राम जी बालक रूप में पुनः प्रकट हुए और तुलसीदास जी से कहा-“बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?
दरतुलसीदास जी मंदिर में विराजित प्रभु श्री राम की प्रतिमा के लिए चन्दन घिस रहे थे। जब बालक रूप में श्री राम उनके पास पहुंचे और चन्दन की मांग की तो हनुमान जी को लगा कि, तुलसीदास फिर से प्रभु को पहचानने में धोखा न खा जाए। ऐसे में हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
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तुलसीदास जी प्रभु श्री राम की अलौकिक छवि को निहारते-निहारते सुध-बुध खो चुके थे। बालक रूप में श्रीराम ने उनका हाथ पकड़कर अपने माथे पर चन्दन तिलक लगा लिया और अन्तर्धान हो गए। इस तरह इस कलयुग में तुलसीदास जी ही इकलौते इंसान है, जिन्हें हनुमान जी के साक्षात् दर्शन नसीब हुए है।
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