Chaitra Navratri 2024: जयपुर जिले का ‘आशापुरा माताजी मंदिर’ अपने आप में बेहद ख़ास है। मंदिर में चैत्र नवरात्रि पर श्रद्धालुओं का दर्शन करने के लिए तांता लगा रहता है। जोबनेर पंचायत समिति की ग्राम पंचायत आसलपुर में 300 फीट पहाड़ी पर यह मंदिर स्तिथ है, जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। नवरात्री के अवसर पर प्रत्येक वर्ष यहां साज-सज्जा की जाती है। नवरात्रि में देवी दुर्गा के जिन स्वरूपों की पूजा होती है, उन्हीं में से एक है मां शाकंभरी।
जयपुर के आशापुरा माताजी मंदिर में भी ‘मां शाकंभरी देवी’ ही विराजमान है। देवी का यह नाम सतयुग के प्रारंभ से आज तक चला रहा है। शाकंभरी देवी ने राजस्थान की पावन धरा पर पहले दर्शन चौहान सम्राट वासुदेव जी को सांभर में दिए। यह दर्शन देवी ने विक्रम संवत 677 की माघ शुक्ल पक्ष की द्वितीया गुरुवार की अर्धरात्रि को दिए। देवी ने राजा को आशापाला के वृक्ष को चीर कर बीस भुजाओं से दर्शन दिए थे। यह अद्भुत और अलौकिक दृश्य था।
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देवगिरी पहाड़ी पर मां का मंदिर
देवी ने राजा को दर्शन देते हुए कहा ‘राजन मैं तुम्हारे वंश की कुलदेवी हूं। मैं तुम्हारी संपूर्ण आशाओं की पूर्ति करूंगी, मेरा नाम आशापुरी है। लेकिन यहां की राजधानी सांभर होने से मेरी पूजा शाकंभरी नाम से होगी। इसके बाद मैं आपकी आने वाली पीढ़ी की आशा पूरी कर ‘आशापुरा जी’ नाम से पूजा स्वीकार करूंगी। इसके बाद ही राजा वासुदेव जी ने सांभर से 8 मील पश्चिम से देवगिरी पहाड़ी पर मां शाकंभरी जी का शक्तिपीठ स्थापित करवाया था।
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मंदिर में 410 से अधिक सीढ़ियां
बताते है कि, नवरात्रि के दिनों आलसपुर गांव के लोग पूर्णतया शाकाहार का पालन करते है। नवरात्र में मां के दरबार में जो भी दर्शन करने आता है, मां उसकी आशाएं पूरी करती है। मंदिर में जाने के लिए जनसहयोग से 410 से अधिक सीढ़ियां बनवाई गई है। जगह-जगह रास्ते में कुर्सियां और छायादार पेड़ भी है, जो श्रद्धालुओं को सुविधा देते है। मां आशापुरा चौहान राजवंश की कुलदेवी है। चौहान वंश से निकले सभी जातियों के लोग इन्हें अपनी कुलदेवी मानते हैं।