Jaipur Holi 2024: इस वर्ष होली का त्यौहार देशभर में 25 मार्च को सेलिब्रेट किया जाएगा। रंगों के इस पर्व पर सस्ते कृत्रिम रंगों और गुलाल का प्रचलन काफी अधिक हैं। लेकिन इस बीच पारंपरिक रंगों का भी चलन एक बार फिर रफ़्तार पकड़ने लगा है। कृत्रिम रंगों की डिमांड के बीच पारंपरिक ‘गुलाल गोटा’ फिर से बाजार में अपनी जगह बना रहा है। बता दे प्राकृतिक रंगों से भरे लाख के छोटे गोल आकार के गेंदों को ‘गुलाल गोटा’ के नाम से जाना जाता है।
जयपुर के कुछ मुस्लिम परिवार प्राकृतिक रंगों से भरे लाख के ‘गुलाल गोटे’ कई पीढ़ियों से बना रहे है। यह परंपरा 400 साल पुरानी है जब तत्कालीन शाही परिवार के सदस्य गुलाल गोटे से होली खेला करते थे। इन गेंदों को छोटी रंगीन लाख की गेंदों जैसी आकृतियों में बनाया जाता है। ये गेंदे पतली और खोखली होती है। इनके अंदर प्राकृतिक रंग/गुलाल भरा जाता है। दूर से इन्हें देखने पर ये मिठाई जैसी प्रतीत होती है। इन्हें राहगीरों को फेंककर होली खेलते है।
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गुलाल गोटे से नहीं लगती चोट
गुलाल गोटे को राहगीरों पर फेंके जाने पर चोट का कोई खतरा नहीं होता है। न सिर्फ जयपुर बल्कि भारत के बड़े-बड़े मंदिरों में गुलाल गोटे अपना रंग बिखेरते है। जयपुर के गोविंद देवजी मंदिर और मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में गुलाल गोटे की मदद से आज भी होली खेली जाती है। बीच के कुछ वर्षों में कृत्रिम रंगों ने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर लिया था। लेकिन एक बार फिर अब खासकर युवा पीढ़ी गुलाल गोटे (Gulal Gota) की तरफ आकर्षित हो रही है।
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ईको फ्रेंडली है गुलाल गोटा
गुलाल गोटा की मदद से पहले राज परिवार होली खेला करते थे। ये इतने पतले और नाजुक होते हैं कि, इन्हें आसानी से हाथ से तोड़ा जा सकता है। पूर्व शाही परिवारों की तरफ से आज भी इन्हें पसंद किया जाता है। गुलाल गोटा एक सुंदर भारतीय शिल्प है। यह गुलाल गोटा पर्यावरण के अनुकूल है, जिसके रंगों का सिंथेटिक रंगों की तरह कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। सिंथेटिक रंगों की तुलना में गुलाल गोटे थोड़े महंगे होते हैं। युवा पीढ़ी इसे अधिक पसंद कर रही है।