Shiv Mandir Pakistan: विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक हैं सिंधु घाटी। यह उत्तर पूर्व अफगानिस्तान से पाकिस्तान और उत्तर पश्चिम भारत तक फैली हुई हैं। पाकिस्तान में स्थित हिंदू शिव मंदिर में, इस सभय्ता की एक झलक देखने को मिलती हैं। यहां एक शिव मंदिर है, जो करीब 5000 पुराना हैं। यह मंदिर महाभारत काल का बताया जाता हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि पांडव भाई यहां पूरे 12 साल रहे थे। मंदिर को ‘कटासराज मंदिर’ के नाम से जाना जाता हैं। कटासराज मंदिर पाकिस्तान के चकवाल जिले से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित है। चलिए जानते हैं इस मंदिर की कुछ ख़ास बातें-
पाकिस्तान में स्थित कटासराज मंदिर परिसर में सात या इससे भी ज्यादा मंदिर हैं, जिसे सतग्रह के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास भोलेनाथ के आंसू और महाभारत में पांडवों के वनवास से जुड़ा है। बताते है, जी तालाब के चारों तरफ यह मंदिर बना हैं, वह भगवान शिव के आंसुओं से भरा हुआ हैं। कहते हैं कि, भगवान शिव अपनी पत्नी सती के साथ यहां निवास करते थे। लेकिन सती की मृत्यु के बाद शिव अपने आंसू नहीं रोक सके और तालाब भर गया। उनके आंसुओं से दो तालाब भरे, जिनमें से एक कटारसराज में है, तो दूसरा राजस्थान के पुष्कर में। कटारसराज मंदिर परिसर में स्तिथ इस कुंड को कटाक्ष कुंड भी कहते हैं। आपको बता दे, कटास का अर्थ आंखाें में आंसू से होता है। इसलिए ‘कटाक्ष कुंड’ नाम ही अपने आप में शिव दुःख को व्यक्त करता हैं।
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बताते है कि, कटास राज में ही पांडव भाई 12 साल के वनवास के दौरान रहे थे। जब वे भाई वन में भटक रहे थे, तो उन्हें प्यास लगी। ऐसे में उनमें में से एक भाई कटाक्ष कुंड के पास जल लेने आया, जिस पर यक्ष का अधिकार था। यक्ष ने पांडव भाई को अपने सवालों का जवाब देने के बाद ही जल ले जाने को कहा। जवाब न देने पर यक्ष ने उसे मूर्छित कर दिया। इसी तरह एक-एक करके चार पांडव आये और यक्ष द्वारा मूर्छित कर दिए गए। अंत में युधिष्ठिर आए और अपनी बुद्धि से सभी सवालों के सही जवाब दिए। इससे प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी मूर्छित पांडवों को चेतना दी और जल पीने की अनुमति प्रदान कर दी।
यहां बौद्ध शासन और हिंदू शाही वंश के दौरान के लगभग 900 साल पहले बने बौद्ध स्तूप, हवेलियां और मंदिर भी हैं। यहां अधिकतर मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। कुछ मंदिर भगवान हनुमान और राम के भी हैं। यहां एक प्राचीन गुरुद्वारा के अवशेष भी मिलते हैं, जहां गुरु नानक ने 19वीं शताब्दी में दुनिया भर की यात्रा करते हुए निवास किया था। मंदिरों की स्थापत्य कला कश्मीरी है, जहां की छत शिखर से नुकीली होती है। मंदिर चौकोर आकार में हैं।
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महाशिवरात्रि के दौरान कटासराज मंदिर में सबसे अधिक श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं। मौजूदा समय में मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं हैं। इसके बाबजूद तीर्थयात्री यहां पांडव भाइयों के बलिदान की स्मृति में पधारते हैं। भगवान शिव के दुख का वंदन करते हैं। तालाब में स्नान कर मोक्ष का मार्ग पाने की आशा करते हैं।
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