Olympics : पेरिस ओलंपिक 2024 की शुरूआत हो चुकी है जहां 100 से भी अधिक भारतीय एथलीट खेलने के लिए गए हैं। इनमें 8 एथलीट ऐसे में जिनसे पक्का मेडल जीतने की उम्मीद है। ओलंपिक में लगातार भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है और हर साल मेडल्स की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसी ओलंपिक में एक खेल ऐसा भी है जिस पर कभी भारत का एकतरफा दबदबा रहा है और वो हॉकी। जी हां, भारतीय हॉकी टीम किसी समय इतनी मजबूत थी की पूरी दुनिया का उसका लोहा मानती थी। इसी भारतीय हॉकी टीम में मेजर ध्यानचंद (Major Dhyan Chand) ने 3 ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजेलिस और 1936 बर्लिन) में भारत को हॉकी के स्वर्ण पदक दिलाए। इतना ही नहीं बल्कि हिटलर भी मेजर ध्यानचंद का मुरीद हो गया था।
पेरिस ओलंपिक 2024 के मौके पर मेजर ध्यान चंद से जुड़े कई हिस्से ऐसे हैं जो आपको बताना लाजिमी होता है। भारतीय हॉकी को शिखर पर ले जाने वाले इस खिलाड़ी ने ऐसे कई यादगार मैच भारत को जिताए हैं, जिनकी बात करें तो शब्द भी कम पड़ जाते हैं। लेकिन, एक वाकया ऐसा भी है, जब ध्यानचंद ने तानाशाह हिटलर के सामने ही उनकी जर्मनी की टीम को बुरी तरह धोया था और हिटलर चुपचाप देखता रहा।
बर्लिन आलंपिक 1936 में हॉकी का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त को खेला जाना था। लेकिन, उस दिन लगातार बारिश की वजह से मैच अगले दिन यानि 15 अगस्त को खेला गया। बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में रोज 40000 दर्शकों के बीच जर्मन तानाशाह हिटलर भी मौजूद था। मैच के दौरान आधे समय तक भारत एक गोल से आगे था। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और खाली पांव कमाल की हॉकी खेलना शुरू किया। इसके बाद भारत ने एक के बाद एक कई गोल दाग डाले।
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1936 के बर्लिन ओलंपिक में मेजर ध्यान चंद की टीम ने 6 गोल दाग डाले जिसके बाद जर्मन काफी खराब हॉकी खेलने लगे। उनके गोलकीपर टिटो वार्नहोल्ज की हॉकी स्टिक ध्यानचंद के मुंह पर इतनी जोर से लगी कि उनका दांत टूट गया। हालांकि, प्राथमिक उपचार के बाद ग्राउंड पर लौटे ध्यानचंद ने खिलाड़ियों को निर्देश दिए कि अब कोई गोल न मारा जाए, जर्मन खिलाड़ियों को ये बताया जाए कि गेंद पर नियंत्रण कैसे किया जाता है। इसके बाद खिलाड़ी बार-बार गेंद को जर्मनी की ‘डी’ में ले जाते और फिर गेंद को बैक पास कर देते। जर्मन खिलाड़ियों की समझ ही नहीं पा रहे थे कि ये हो क्या रहा है।
भारतीय हॉकी टीम ने उस फाइनल मैच में जर्मनी को 8-1 से हराया जिसमें 3 गोल मेजर ध्यानचंद ने किए। हालांकि, 1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई थी। लेकिन फाइनल मैच में जर्मनी को हिटलर के सामने ही बुरी तरह से हराया।
1932 के ओलंपिक के दौरान भारत ने अमेरिका को 24-1 और जापान को 11-1 से हराया। मेजर ध्यानचंद ने उन 35 गोलों में से 12, जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल दागे। इससे उन्हें ‘हॉकी का जुड़वां’ कहा गया। ध्यान चंद 22 साल तक भारत के लिए खेले और 400 इंटरनेशनल गोल किए। ध्यानचंद का 3 दिसंबर, 1979 को दिल्ली में निधन हो गया। इसके बाद झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे।
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