अत्यधिक संवेदनशीलता आमंत्रित कर सकती है अनेक रोगों को
जी हां अगर आप बहुत सेंसिटिव है। इमोशनल है, तो मान कर चलिए। आपका शरीर बहुत से रोगों का घर बन सकता है। आयुर्वेद ही नहीं आधुनिक स्टडी भी इस बात के पुख्ता सबूत देती है कि जब -जब व्यक्ति तनाव, स्ट्रेस, अवसाद में होता है। तब- तब उसको अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
तनाव से शरीर में कॉर्टिसोल (cortisol) नाम का हार्मोन अधिक रिलीज होता है जिसे स्ट्रेस हार्मोन कहा जाता है इसी हारमोंस की वजह से इंसान की स्किन पर स्ट्रेस नजर आने लगता है।
संवेदनशील होना अच्छी बात है। किंतु अति संवेदनशीलता आप पर भारी पड़ सकती है। खासकर महिलाएं बहुत सेंसिटिव होती हैं। वे अपनी भावनाओं पर कंट्रोल नहीं कर पाती या फिर अत्यधिक भावनाओं में बह जाती है। ऐसे में मस्तिष्क से बहुत से हारमोंस रिलीज होते हैं। जिनकी वजह से शारीरिक- मानसिक परेशानियां बढ़ती है। इसी में त्वचा से संबंधित कुछ गंभीर रोग भी जन्म लेने लगते हैं।
हमारा मस्तिष्क कई प्रकार के हारमोंस रिलीज करता है। अगर तनाव का स्तर बढ़ता है, तो एड्रेनोकॉर्टिकॉट्रॉपिक हार्मोन ACTH प्रभावित होता है। इससे मेलाज्मा हो जाता है, शरीर और चेहरे पर भूरे रंग के दाग धब्बे पड़ने लगते हैं।
इतना ही नहीं इंसान जब इमोशनल स्थिति का का सामना करता है। जैसे किसी अपने की बेवफाई,रिश्तो में धोखा, एक तरफा प्यार या बच्चों को लेकर, या बिजनेस की टेंशन तनाव का स्तर बढ़ा देती है ऐसे में मस्तिष्क में उथल-पुथल चलती रहती है जिसका सीधा प्रभाव तन और मन पर पड़ता है। उसकी नसों में खिंचाव होने लगता है।
चेहरे पर लाल रंग का पिगमेंटेशन होने लगते हैं। जिसे रोजेशिया कहा जाता है। इस बीमारी में मरीज का चेहरा टमाटर जैसा लाल हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे उसने मेकअप किया हो। लेकिन यह संकेत है रोजेशिया और सोरायसिस का।
जब तनाव का स्तर और बढ़ जाता है। इम्यूनिटी कम होने लगती है। तब स्ट्रेस स्किन के माध्यम से बाहर निकलने लगता है और यह सोरायसिस का रूप ले लेता है। जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है। तब त्वचा पर दरारें पड़ने लगती है। बाल झड़ने लगते हैं। स्किन झड़ने लगती है। कभी-कभी तो खून भी आने लगते हैं।
वही इसका प्रभाव पुरुषों में भी देखने को मिलता है। उनके प्राइवेट पार्ट में एलर्जी होने लगती है। कभी-कभी तो ब्लीडिंग भी हो जाती है। जिससे कि प्राइवेट पार्ट्स की आउट स्क्रीन ड्राई होकर झड़ने लगती है।
तनाव का प्रभाव संबंधों पर भी पड़ता है। इस दौरान महिलाओं को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह दिक्कत उनकी रिलेशनशिप को भी प्रभावित करती है।
ऐसे में समाधान यही है कि छोटी छोटी चीजों को नजरअंदाज करें। अत्यधिक स्ट्रेस ना लें। नींद पूरी करें, जो भी बात है वह खुलकर कहें। याद रखिए संवाद से समाधान संभव है। जान है तो जहान है।
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