Women Day Poem By Pushpa Jha
जयपुर। Women Day Poem: Women Day पूरी दुनिया में बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है जिसके तहत महिलाओं के मान-सम्मान व सुरक्षा को बढ़ाने समेत उनके संपूर्ण विकास हेतु कई तरह के कार्यक्रम करने समेत अभियान छेड़े जा रहे हैं। लेकिन जयपुर की कवयित्री पुष्पा झा (Pushpa Jha) ने महिला दिवस को लेकर अलग ही तरह की कविता लिखी है जिसमें उन्होंने महिला दिवस नहीं मनाने के लिए कहा है। अब पुष्पा झा ने महिला दिवस नहीं मनाने की यह अपील क्यों की है इसका पता आपको यह कविता पढ़कर ही चलेगा। तो पढ़िए…
है नहीं मुझे स्वीकार
ये महिला दिवस त्यौहार ।।
कभी शक्ति -लक्ष्मी-वागीशा
कभी जननी भगिनी आत्मजा
बन सृष्टि- सृजन का भार लिया
जग जीवन को साकार किया
तिस पर ये अत्याचार !!
है नहीं मुझे स्वीकार
ये महिला दिवस त्यौहार ।।
हर रोज सुनाई देती हैं
चीखें निर्भयाआशिफा की
मंदिर में सतायी जाती हैं
मस्जिद में नोची जाती हैं
तो कैसा यह त्यौहार ?
है नहीं मुझे स्वीकार
ये महिला दिवस त्यौहार ।।
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जहाँ कोख में बेटियाँ मरती हैं
पियु घर में रोज सुलगती हैं
रिक्शा से खींची जाती हैं
बस में भी नोची जाती हैं
उफ ! कैसा यह व्यवहार !!
है नहीं मुझे स्वीकार
ये महिला दिवस त्यौहार ।।
देना ही है तो दे देना
समभाव समरसता का चादर
जब बैठूँ उस पर पुलकित मन
न हो आशंकित मेरा मन
मिटे भय शंशय का बाजार
तब होगा मुझे स्वीकार
ये महिला दिवस त्यौहार ।
-पुष्पा झा, जयपुर
(Pushpa Jha, Jaipur)
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