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क्या अपर हाउस डुबो देगा, बाइडेन का टाइटेनिक जहाज।

क्या अमेरिका डिफॉल्ट होगा? अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था जिस पर दुनिया की बहुत सी अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से टिकी हुई है। ऐसे में राष्ट्रपति बाइडेनन के बयान महत्वपूर्ण हो जाते है। राष्ट्रपति जो बाइडेन की सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिक पार्टी के बीच कर्ज लेने की सीमा बढ़ाने को लेकर तनातनी का माहौल जारी है। इस बीच राजनीतिक विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने अपने अपने बयान और अनुभव सांझा किए है।

अर्थशास्त्रियों का मत

अमेरिका के डूबते जहाज पर कई अर्थशास्त्रियों ने अपने बयान दिए हैं। न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर लॉरेंस जे वाइट ने अलजजीरा से बातचीत में कहा कि इसे लेकर कोई कुछ नहीं कह सकता। क्योंकि यह एक राजनीतिक मुद्दा लगता है। उन्होंने आगे कहा मैं उम्मीद करता हूं कि कोई हल निकलेगा।

लेकिन यह बाज बटेर का खेल है। जिसमें दोनों में से किसी एक पक्ष को झुकना पड़ेगा। डिफॉल्ट से बचने के लिए अमेरिकी संसद को कर्ज की सीमा को बढ़ाना होगा। लेकिन रिपब्लिक पार्टी इसके लिए राजी नहीं हो रही। पक्ष विपक्ष में उलझा है अमेरिका। उनका कहना है कि राष्ट्रपति बाइडेन सरकार पहले अपने कर्ज में कटौती करें।

उन्होंने कहा इसी कारण कर्ज सीमा बढ़ाने से जुड़ा हुआ बिल अमेरिकी संसद के अपर हाउस, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में पास नहीं हो पा रहा।
 आपको बता दें अपर हाउस में रिपब्लिक पार्टी के पास बहुमत है। ऐसे में वह बिल को पास होने से रोक रही है। रेटिंग एजेंसी मूडीज के विशेषज्ञ सहायक निदेशक बर्नार्ड यारोस का कहना है कि दोनों पार्टियों के बीच गतिरोध को लेकर टेंशन डिफॉल्ट डेट के नजदीक आने से और बढ़ गई है।

उन्होंने आगे कहा अगर ट्रेजरी 15 जून तक किसी तरह डिफॉल्ट को टाल सकता है तो बिजनेस और लोगों से मिले टैक्स तथा नए उपायों से हासिल 150 अरब डॉलर से कुछ समय तक राहत मिल जाएगी। आपको बता दें डिफॉल्ट डेट वह दिन है, जब ट्रेजरी के पास बिलों का भुगतान के लिए पैसे खत्म हो जाएंगे। वहीं अप्रैल में कम टैक्स कलेक्शन की वजह से डिफॉल्ट डेट अगस्त के बजाय 1 जून बताई जा रही है।

भारत पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। डॉलर, सोना और इंडियन रूपी, अर्थव्यवस्था सभी पर इसके सीधे प्रभाव देखने को मिलेंगी। अमेरिका के 3 बड़े बैंक पहले ही दिवालिया घोषित हो चुके हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

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