कल 22 मई को ही देश ने जैव विविधता दिवस मनाया है। क्या होती है जैव विविधता?
सौरमंडल में पृथ्वी ही अभी तक एक ऐसा ग्रह है। जहां जीवन संभव है। ब्लू प्लेनेट पर असंख्य प्रजातियों का निवास है। पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट के साथ साथ हिमालय क्षेत्र भारत के मुख्य हॉटस्पॉट है। सच तो यह है कि जितनी अधिक जैवविविधता होती है। प्रकृति उतनी ही फलती- फूलती है। यह एक पिरामिड संरचना है, जो हमारे जैविक संतुलन को दर्शाती है। जब- जब यह बिगड़ती है। तब तब पर्यावरण, पारिस्थितिकी और प्रकृति की संरचना में असंतुलन उत्पन्न होता है। इस समय भारतीय मौसम ही नहीं। दुनिया भर का मौसम और मानसून चर्चा का विषय बना हुआ है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आईएमडी ने माना है कि अलनीनो की वजह से भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह सिस्टम जुलाई के महीने में सक्रिय होगा। अलनीनो और ला नीना जैसी परी घटनाएं मानसून और मौसम पर सीधा प्रभाव डालती है। यही वजह है कि आने वाले समय में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंचेगा।
मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले महीने तक तापमान औसत से करीब डेढ़ डिग्री सेल्सियस ऊपर चढ़ेगा। इसका असर जुलाई के महीने में भी पड़ेगा। तब आपको तीखी गर्मी का एहसास भी होने वाला है वैसे केरल में मानसून जून के प्रथम सप्ताह में पहुंच जाता है। लेकिन उत्तर भारत आने में इसे थोड़ा वक्त लगता है। ऐसे में तापमान का बढ़ना समस्याएं उत्पन्न करेगा।
अगर यूं ही तापमान बढ़ता रहा, तो सदी के अंत तक यह 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है और अगर यह इतना बढ़ा तो सन 2100 तक 60 करोड़ भारतीयों के लिए यह गर्मी एक मुसीबत बनकर टूटेगी। तमाम वैश्विक और भारतीय प्रयास इन आंकड़ों को झुठला सकते हैं। अगर हम सब इस पर्यावरण, प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान दे तो।
वैज्ञानिकों का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग और कार्बन उत्सर्जन का सबसे बुरा प्रभाव भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, नाइजीरिया, इंडोनेशिया जैसे देशों पर पड़ने वाला है।
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटन में ग्लोबल सिस्टम्स इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर टिम लेन्टन कहते हैं कि हमें धरती पर कुछ बड़े बदलाव करने होंगे। उन्होंने कहा गर्मी से मरना एक बुरी मौत होती है। किसी को इस से बचाना आसान है। लेकिन इन गर्मी लगे ही क्यों? हम लोग मिलकर इस मुसीबत से उन्हें बचा सकते हैं।
माना जा रहा है कि अगले कुछ वर्षों में इस गर्मी से कुल 200 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान आफत में आने वाली है। यह स्टडी नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुई है। इस गंभीर विषय पर और अधिक वैश्विक प्रयास करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
2015 में हुआ पेरिस समझौता इन दिनों फिर से सुर्खियों में आ गया है। इस के तहत 2100 तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे नहीं बढ़ने देना था। लेकिन जिस गति से तापमान बढ़ रहा है। वह गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। अगले 6-7 दशक में दुनिया की बढ़ती आबादी और भी चिंता का विषय होगी। माना जा रहा है कि 950 करोड लोगों की आबादी में लगभग 50 करोड लोग गर्मी से ही खत्म हो जाएंगे।
आप स्वयं सोचिए कौन है इसका जिम्मेदार?
बढ़ती हीट वेव, कार्बन उत्सर्जन, पर्यावरण प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि, समस्याओं पर समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं। ऐसे में क्या हो आगे की राह?
क्या आप जानते हैं पृथ्वी का औसत तापमान कितना होता है?
पृथ्वी का औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस आंका जाता है। कहीं-कहीं पर यह 13 डिग्री भी माना जाता है। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग ने इस तापमान के औसत को बिगाड़ दिया है। इस वजह से पूरी दुनिया का तापमान बदल रहा है। अब कई स्थानों पर औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। इस समय उष्णकटिबंधीय ट्रॉपिकल जोन में जलवायु परिवर्तन के तेज प्रभाव देखे जा रहे हैं। जो जानलेवा हो सकता है।
हां, यही हाल रहा तो अगले कुछ सालों में दुनिया का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। यह एक बड़ी पर्यावरणीय घटना है। जिसका खुलासा विश्व मौसम विज्ञान विभाग वर्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (world metrological organisation) ने किया है। वैसे शायद आपको याद होगा। कुछ सालों पहले अमेरिका जैसा देश पेरिस क्लाइमेट समझौते से अलग हो गया था। ऐसे में विकसित देशों का यह रवैया आने वाले समय में और समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
अब वह दिन दूर नहीं। जब हम भी जलेंगे और आप भी जलेंगे
क्योंकि अब आपदाएं आती रहेंगी। अगर हमने ठोस कदम नहीं उठाए तो? वैसे मौसम विभाग का इस समय मानना है कि भारत में इंडियन ओशन डाइपोल (आईओडी) सिस्टम बन रहा है। जो मानसून को कमजोर करने से रोकेगा। इसलिए मानसून के सामान्य रहने की संभावनाएं हैं। वही अलनीना की बात करें तो यह अब तक 60 फ़ीसदी भारत के लिए फायदेमंद रहा। जब जब यह आया, तब- तब यहां मानसून सामान्य रहा।
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