एक तरफ जहां देश और दुनिया के कई देशों में शरीयत कानून की मांग बढ़ती जा रही है वहीं इस्लामिक देश मलेशिया में सुप्रीम कोर्ट ने शरीया आधारित कानूनों (Sharia based laws) को अवैध करार दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि धर्म विशेष पर आधारित कानून देश की संघीय सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण है। कोर्ट के इस फैसले की कट्टरपंथी संगठनों ने आलोचना की है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए इस्लामिक कट्टरपंथियों ने इसे शरीया कानूनों पर खतरा बताया है। उनका मानना है कि देश के दूसरे राज्यों द्वारा शरिया पर बनाए गए कानूनों को भी इसी तरह अवैध घोषित किया जा सकता है।
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मलेशिया के ग्रामीण इलाके के एक छोटे से गांव केलंतन में स्थानीय प्रशासन ने शरीया आधारित 16 नए कानून बनाए थे। इन कानूनों में दुष्कर्म, अनाचार सहित अनेकों अपराधों के लिए दंड का प्रावधान किया गया था। इन कानूनों (Sharia based laws) के खिलाफ केलंतन की ही दो मुस्लिम महिलाओं ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।
दोनों महिलाओं ने अपनी याचिका में केलंतन प्रशासन द्वारा लागू किए गए इन शरीया कानूनों को हटाने की प्रार्थना की गई थी। इस गांव में करीब 97 फीसदी मुस्लिम रहते हैं तथा शेष 3 फीसदी अन्य धर्मों के लोग हैं।
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याचिका की सुनवाई करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संघीय कोर्ट 8-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यह संघीय सरकार के अधिकार में आता है इसलिए राज्य इन विषयों पर इस्लामिक कानून नहीं बना सकते हैं।
वर्तमान में मलेशिया में दो अलग-अलग कानून प्रणालियां बनी हुई है। इसमें देश के सिविल कानूनों के साथ-साथ शरीया (Sharia based laws) के तहत मुस्लिमों के पारिवारिक और व्यक्तिगत मामले भी आते हैं। कोर्ट ने कहा कि कानून बनाना देश की केन्द्रीय सरकार का क्षेत्र हैं एवं वहीं इस पर कानून बनाने या हटाने का अधिकार रखती हैं।
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