Namaz vs Salat: मुसलमानों के लिए दिन में 5 बार नमाज पढ़ना फर्ज है। इस्लाम में नमाज का अहम स्थान है। मेराज की रात में पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब को अल्लाह ने मुलाकात के लिए सातवे आसमान पर अर्श पर बुलाया था। वही पर आखिरी नबी को उम्मत के लिए नमाज का तोहफा मिला था। लेकिन कई बार आपने अरब देशों में नमाज की जगह सलात या फिर सलाह शब्द सुना होगा। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि खाड़ी देशों में नमाज को सलाह या सलात (Namaz vs Salat) क्यों कहा जाता हैं।
नमाज, सलाह या सलात सब एक है
नमाज एक फारसी शब्द है, जो उर्दू में अरबी शब्द सलात (Namaz vs Salat) का पर्याय है। सऊदी अरब में इसे सलाह कहा जाता है। कुरान शरीफ में सलात शब्द हजारों बार आया है। नबी ए करीम ने नमाज को अपनी आंखों की ठंडक कहा है। हर बालिग मुसलमान मर्द औरत को दिन में पांच बार नमाज पढ़ने का हुक्म दिया गया है। इस्लाम के पांच स्तंभों में से नमाज दूसरे नंबर पर आता है। दिन में पांच नमाजे होती हैं, जिन्हें दुबई जैसे खाड़ी देशों में सलात या फिर सलाह कहा जाता है।
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नमाज इस्लाम का स्तंभ है
नमाज इस्लाम के पांच स्तंभों में से सबसे अहम स्थान रखता है। आखिरी रसूल फरमाते हैं कि लोगों नमाज कभी न छोड़ना, जिसने बिना वजह नमाज को छोड़ा तो उसने सब कुछ गंवा दिया। पैगंबर साहब ने कहा कि नमाज जिंदगी में परहेजगारी लाती है। यानी नमाज पढ़ने वाला कभी भी कोई बुरा काम नहीं कर सकता है। जो ईमान वाला दिन में पांच बार नमाज पढ़ता हैं तो उसकी जिंदगी सुकून वाली हो जाती है। बेशक नमाज हर तरह की बुराई और बेहयाई से बचाती है। तो चाहे सलात कहो या सलाह या फिर नमाज सब एक ही इस्लामिक पूजा पद्धति के अलग अलग पर्यायवाची (Namaz vs Salat) शब्द हैं।
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