Ramadan Zakat: रमजान का माहे मुबारक सारे आलम में चल रहा है। मुसलमान रोजे रखने के साथ ही इस महीने में जकात अदा करते हैं। जकात यानी मालदार मुस्लिम गरीबों को अपनी कमाई का ढ़ाई प्रतिशत हिस्सा दान में देते हैं। लेकिन शर्त है कि माल हलाल तरीके से कमाया हुआ हो। यानी ब्लैक मनी जकात के तौर पर देना इस्लाम में हराम है। सिर्फ आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से ही गरीबों की ज़कात दे सकते हैं। लेकिन भारत में खाड़ी देशों से जमकर रमजान के महीने में जकात का पैसा (Ramadan Zakat) आता है। ये पैसा दरअसल अरब के शेखों की काली कमाई होती है जिसे वो भारत के मुस्लिम बंधुओं को जकात देकर ये सोच लेते हैं कि माल पाक हो गया है। हम आपको मुस्लिम देशों के इस दोगले रवैये से आज वाकिफ कराने जा रहे हैं। ताकि भारत के खुद्दार और जमीर वाले मुस्लिम भाई अरब से आने वाली जकात को लेकर सतर्क रहें।
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रमजान के महीने में जकात देने का हु्क्म है। ईमान, नमाज, रोजा और हज के बाद जकात भी इस्लाम का पांचवा स्तंभ है। जकात का पैसा अरब देशों से भारत खूब आता है। चूंकि अरब के शेखों के पास तेल की कुँओँ को अनाप शनाप संपत्ति मौजूद हैं। लेकिन भारत में वो अपना दो नंबर का माल जकात के तौर पर व्हाइट मनी में तब्दील करने के लिए हर साल रमजान के पाकीजा महीने में भेजते रहते हैं। हालांकि भारत में गरीबी ज्यादा होने की वजह से यहां के भोले भाले मुसलमान अरबों की इस कूटनीति को समझ नहीं पाते हैं।
जकात के नाम पर दुबई से भी भारत जमकर पैसा आता है। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में भारत में दुबई से सबसे ज्यादा 10 मिलियन डॉलर जकात आई थी। दूसरे नंबर पर सऊदी अरब है, फिर कुवैत, कतर और ओमान का नंबर आता है। यानी कुल मिलाकर हम भारतीय मुसलमान अरबों की काली कमाई को जकात समझकर ले तो लेते हैं, लेकिन उसके बदले गुनाह भी कमा रहे हैं।
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इस्लाम में जकात देना केवल मालदार मोमिन पर फर्ज है। अपनी कुल कमाई पर साल भर गुजर जाने के बाद जो सेविंग बचती है उसका 2.5 प्रतिशत हिस्सा गरीबों को देना ही जकात है। लेकिन हलाल माल ही जकात में दे सकते हैं, हराम माल को जकात में देना बड़ा गुनाह है।जकात हर उस मुसलमान का फर्ज है, जिसके पास साढ़े 52 तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना रखा है, यानी एक साल गुजर गया हो और इतनी कीमत के जेवरात या कैश आपके पास रखा हो तो उस पर 2.5 फीसदी जकात लगती है।
रमजान में इस दान को दो तरह से दिया जाता है, जिनको फितरा और जकात कहते हैं। चूंकि हर बंदे का अपना जमीर और खुद्दारी होती है। इसीलिए जकात देने वाला और लेने वाला दोनों गोपनीय तरीके से लेनदेन कर ले। क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर जकात लेने वाले व्यक्ति को ये एहसास नहीं होना चाहिए कि उसे सार्वजनिक रूप से जकात देकर बेइज्जत या जलील किया जा रहा है। इस्लाम में दान पुण्य के नाम पर होने वाले दिखावे पर सख्त पाबंदी है।
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